नगर निगम के ठेकेदार शुभम खंडेलवाल द्वारा 9 सितंबर को सोशल मीडिया पर सुसाइड नोट जारी कर खुदकुशी ली गई थी। सुसाइड नोट के आधार पर ही चिंतामन पुलिस ने उपयंत्री संजय खुजनेरी, सहायक उपयंत्री नरेश जैन व ठेकेदार तन्मय उर्फ चीनू वदेका पर धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मुकदमा दर्ज किया था। पुलिस सूची में फिलहाल तीनों आरोपी फरार हैं। जिनकी गिरफ्तारी पर मंगलवार को एसपी मनोज सिंह ने 3-3 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया।
ठेकेदार शुभम खंडेलवाल की खुदकुशी को पूरे 21 दिन हो गए हैं। इस बीच उसकी डॉक्टर पत्नी ने सदमे में इंदौर की बहुमंजिला इमारत के तीसरे माला से कूदकर खुदकुशी की कोशिश की। जिस पर गंभीर अवस्था में उसका दिल्ली में उपचार जारी है। चार बहनों ने अपने इकलौते भाई शुभम की खुदकुशी में उपयंत्री संजय खुजनेरी व सहायक उप यंत्री नरेश जैन को दोषी ठहराते हुए उनकी जल्द गिरफ्तारी को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ज्ञापन देकर गुहार भी लगाई। बावजूद अब तक आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर हैं। इधर नगर निगम विभाग द्वारा भी उनके खिलाफ नाममात्र का भी कोई एक्शन नहीं लिया गया। इससे स्पष्ट है कि इन विभागों की कोई न कोई अधिकारी चौकड़ी आरोपी खुजनेरी व जैन को बचाना चाहती है। अब इस मामले में मंगलवार को प्रशासन की ओर से मजिस्ट्रियल जांच के आदेश जारी किए गए हैं। अब ये मजिस्ट्रियल जांच ठेकेदार शुभम खंडेलवाल की खुदकुशी से जुड़ी है या फिर नगर निगम में करोड़ों के भ्रष्टाचार से भी इसका कोई लेना-देना है। इस बात का अधिकृत खुलासा अब तक नहीं हो सका है। प्रशासन द्वारा अब तक बैठाई मजिस्ट्रियल जांच के पुराने प्रकरणों के उदाहरण खोजेंगे तो उनकी ये मजिस्ट्रियल जांच पानी का डेंगू सांप ही साबित हुई है। इसमें दूर से देखने पर तो प्रतीत होता है कि कोई जहरीले किस्म का सांप डंस लेगा लेकिन नजदीक आने पर जानकारी लग जाती है कि इसके दंश में न कोई जहर है और न ही ये किसी को कोई नुकसान पहुंचा सकता है। ठेकेदार शुभम की खुदकुशी के 21 दिन बाद प्रशासन के पिटारे से निकले मजिस्ट्रियल जांच के डेंगू सांप से सवाल खड़े होते है कि इसे आरोपियों को बचाने के लिए या फिर नगर निगम में करोड़ों के भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए छोड़ा गया है।
प्रशासन की मजिस्ट्रियल जांच, इसलिए मतलब पानी का डेंगू सांप
नियंत्रण व सुरक्षा से जुड़े लगभग हर विभाग के पास अपने-अपने पावरफुल या भारी भरकम शब्द हैं। वैसे तो इन शब्दों को सुनकर दोषियों को डरना चाहिए लेकिन डरता आम इंसान ही है। जैसे सेना में शब्द है 'सर्जिकल स्ट्राइक', पुलिस में शब्द है 'कोंम्बिंग गस्त' व अन्य। मजिस्ट्रियल जांच दो प्रकार की होती है। न्यायायिक मजिस्ट्रियल जांच और प्रशासनिक मजिस्ट्रियल जांच। पुलिस अभिरक्षा में जब किसी बंदी या अन्य व्यक्ति की मौत हो जाती है, तब न्यायायिक मजिस्ट्रियल जांच बैठती है। इसमें माननीय न्यायाधीश खुद जांच करते हैं। जिस पर संबंधित दोषी का बच पाना संभव नहीं हो पाता है। वहीं संभाग या जिला स्तर पर प्रशासनिक मजिस्ट्रियल जांच करवाए जाने में कमिश्नर व कलेक्टर के पावर हैं। ठेकेदार शुभम खंडेलवाल की खुदकुशी के मामले में अब 21 दिन बाद कलेक्टर आशीष सिंह द्वारा डिप्टी कलेक्टर वीरेंद्र सिंह दांगी को मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए गए हैं। इसके 5-7 साल पहले बड़नगर थाना क्षेत्र के समीप व घट्टिया थाना क्षेत्र के रातड़िया स्थित पटाखा फैक्टरी में अचानक विस्फोट से एक साथ 23 से अधिक मजदूरों की मौत हो गई थी। इन मौतों में गर्भवती महिला व बच्चें भी शामिल थे। अलग-अलग इन हादसों के मामले में भी संबंधित कलेक्टरों ने भी मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए थे। यदि इन मजिस्ट्रियल जांचों को आज खंगाला जाए तो रिपोर्ट धूल खा रही होगी, जो दोषी थे वे नियम-कायदे को ताक में रखकर अभी भी अपनी-अपनी पटाखा फैक्टरी संचालित कर रहे होंगे और मृत मजदूरों की आत्माएं आज भी न्याय की तलाश में प्रशासन की दहलीज पर भटक रही होगी। इसलिए प्रशासन की मजिस्ट्रियल जांच का मतलब पानी का डेंगू सांप। अब देखना है कि ठेकेदार शुभम की खुदकुशी के मामले में कलेक्टर सिंह द्वारा 21 दिन बाद बैठाई मजिस्ट्रीयल जांच भी पानी का डेंगू सांप ही साबित होती है या फिर इस जांच के दंश से वाकई दोषियों को काल कोठरी में भेजा जा सकेगा।
कलेक्टर ने कॉल रिसीव नहीं किए, वे उज्जैन निगमायुक्त भी रह चुके हैं
ठेकेदार शुभम खंडेलवाल की मौत के मामले में 21 दिन बाद मजिस्ट्रियल जांच के संबंध में अधिक व अधिकृत जानकारी के लिए कलेक्टर आशीष सिंह से चर्चा करनी चाही गई लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किए। मोबाइल से संपर्क कर उनसे जानना चाहा गया था कि उनके द्वारा बैठाई मजिस्ट्रियल जांच ठेकेदार शुभम की मौत की जांच को लेकर है या फिर इस हादसे के बाद उजागर हुए करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार को लेकर है। गौरतलब है कि कलेक्टर सिंह इसके पहले उज्जैन नगर निगम आयुक्त भी रह चुके हैं। जिस पर उनका नगर निगम संबंधित कार्य या वहां घटित क्रिया-कलापों को लेकर अच्छा-खासा परिचय है।