क्या कोई पीड़ित बेशकीमती जमीन खरीद बिना अनुमति के अपना आशियाना खड़ा कर सकता है, यदि नहीं तो समझो फिर ये खेल है ? मामला इन सीएसपी से जांच नहीं करवाने का

डॉन रिपोर्टर, उज्जैन।


शब्दों के अपने-अपने अर्थ हैं पर कई मामलों में चालबाज को ही पीड़ित बताया जाता है। धोखेबाज को फरियादी बनाकर खड़ा कर दिया जाता है। अनावेदक को आवेदक बनाकर भेज दिया जाता है। हालांकि आहिस्ता ही सही लेकिन पुलिस व प्रशासन की पुख्ता जांच में अंत में सारे खेल की पोल खुल ही जाती है।इंदौर रोड पर महामृत्युंजय द्वार के समीप सांवरिया परिसर में नगर निगम में बंधक रखे प्लाटों के मामले में अभी ये पता ही नहीं चल सका है कि इनमें कौन पीड़ित है ? कौन धोखेबाज है और कौन चालबाज है या फिर कौन फरियादी है ? लेकिन पुलिस व प्रशासन की जांच से पहले ही कुछ लालची लोगों ने अपने-अपने हिसाब से किसी को पीड़ित तो किसी को धोखेबाज बताना प्रसारित कर दिया है। नए शहर में नानाखेड़ा थाना अंतर्गत आने वाले इस मामले की जांच पुराने शहर में कोतवाली सीएसपी पल्लवी शुक्ला के पास कैसे पहुंची। ये जानकारी तो अभी सामने नहीं आ सकी लेकिन कॉलोनाइजर महेश सुगंधी द्वारा 29 जुलाई 2020 को आईजी राकेश गुप्ता व 30 जुलाई को एसपी मनोज सिंह से की गई शिकायत के बाद उनके खिलाफ सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। अपनी लिखित शिकायत में कॉलोनाइजर सुगंधी का स्पष्ट आरोप है कि सीएसपी शुक्ला सामने वाले पक्ष या खुद को कोई फायदा पहुचाने के इरादे से जांच पर कम और गलत समझौते के लिए दवाब बना रही हैं। पहले इस मामले में 2010 में पीड़ित बनकर सुरेशकुमार खड़ा हुआ था और अब मालनवासा निवासी बुजुर्ग किसान रघुनाथ को पीड़ित बता प्रसारित किया जा रहा है कि अपना आशियाना बनाने के लिए उसने सांवरिया परिसर में जमीन खरीदी थी लेकिन वह भूमाफियाओं के कारण अब तक अपना आशियाना बनाने में सफल नहीं हो सका है। जिस पर इस प्रसारण के बाद सवाल खड़े होते है कि क्या कोई साफ-सुथरा व्यक्ति अपनी मेहनत की कमाई से बिना जांच-पड़ताल के प्राइम लोकेशन पर बेशकीमती जमीन खरीद सकता है और नगर निगम या अन्य जिम्मेदार एजेंसी से बिना अनुमति के अवैध निर्माण कार्य शुरू कर सकता है क्या ? यदि नहीं तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि ये औने-पौने दाम में बेशकीमती जमीन हड़पने का कोई खेल है क्योंकि मौके पर हो चुके करीब 10 लाख रुपए कीमत के अवैध निर्माण को 7 सितंबर 2019 को तत्कालीन निगम आयुक्त से लिखित शिकायत कर खुद महेश सुगंधी ने ही रुकवाया था। यदि अब बुजुर्ग किसान रघुनाथ पीड़ित है तो उसने बिना अनुमति के करीब 10 लाख रुपए का अवैध निर्माण कैसे कर लिया और यदि सुगंधी दोषी हैं तो उन्होंने मौके पर बिना अनुमति का अवैध निर्माण नगर निगम से कैसे रुकवा दिया और यदि सुरेशकुमार पाकसाफ है तो उसने अपने परिजनों द्वारा 1996 में बेची जमीन में से नगर निगम में बंधक रखे प्लाटों की रजिस्ट्री बुजुर्ग पीड़ित किसान रघुनाथ या फिर अन्य किसी के नाम कैसे कर दी ?


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