सांप-सीढ़ी खेल की तर्ज पर 99 पर डंसे गए सिंधिया के ये दरबारी फिर पहुंचे शून्य पर, अब भाजपा से बतौर कार्यकर्ता करेंगे नई शुरुआत

डॉन रिपोर्टर, उज्जैन।


सांप-सीढ़ी के खेल में जिसकी गोटी शून्य से चलकर पहले 100 अंक पर पहुंचती है। वह विजय कहलाता है। 99 अंक पर गोटी को डंसने के लिए सांप फन फैला कर बैठा रहता है। जिसकी गोटी सांप के फन की चपेट में आ जाती है। वह 99 से लुढककर सीधे शून्य पर आ जाती है।


इसी खेल की तर्ज पर कांग्रेस में रहकर 98 तक पहुंचे ज्योतिरादित्य सिंधिया के ये दरबारी 99 पर डंसे जाने के बाद अब फिर वापस शून्य पर आ गए हैं। इन सभी ने गुरुवार को भोपाल में मंत्रिमंडल गठन के दौरान अधिकृत तौर पर भाजपा पार्टी का केसरिया व हरा मिश्रित रंग का दुपट्टा धारण कर लिया। अब भाजपा से ये सभी बतौर कार्यकर्ता अपनी नई पारी की शुरुआत करेंगे। इसके पहले कांग्रेस में रहकर इन दरबारियों में से कोई विधायक, तो कोई प्रदेश उपाध्यक्ष जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण पदों तक पहुंचने में सफल हो चुका था। प्रस्तुत है डेरिंग ऑफ न्यूज़ की विशेष रिपोर्ट...


उज्जैन से सिंधिया के ये दरबारी अब भाजपा से करेंगे बतौर कार्यकर्ता नई शुरुआत


राजेन्द्र भारती- कांग्रेस के टिकट पर 1998 में पहली बार भाजपा प्रत्याशी पारस जैन को हराकर उज्जैन उत्तर से विधायक बने। इसके बाद पारस जैन से 2003 और 2018 में भारी मतों के अंतर से पराजित हुए। वैसे सिंधिया के दरबारी के तौर पर सबसे अधिक लाभ इन्होंने ही लिया है। भाजपा में बतौर कार्यकर्ता नई शुरुआत में सिंधिया राग अलापने के एवज में भी इन्हें कांग्रेस से पूर्व विधायक के तौर पर आजीवन हर माह करीब 50 हजार रुपए पेंशन व अन्य सुविधाएं मिलती रहेगी।


संजय ठाकुर- कांग्रेस में रहकर प्रदेश उपाध्यक्ष व शहर कार्यकारी अध्यक्ष सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे। निगम चुनावों में हमेशा उनके कोटे से 2-3 पार्षद टिकट रहते थे। पूर्व पार्षद व अब पार्षद प्रतिनिधि नाना तिलकर इनकी ही खोज मानी जाती है।


आजम शेख- सही मायनों में ये पूर्व विधायक राजेन्द्र भारती के दरबारी माने जाते हैं। इसलिए हम इन्हें दरबारी का दरबारी भी मान सकते हैं। कांग्रेस में रहकर ये लंबे समय तक जीवाजीगंज ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष रहे और सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से पहले तक ये शहर कार्यकारी कांग्रेस अध्यक्ष थे।


दिलीपसिंह परमार- पूर्व विधायक राजेंद्र भारती के कोटे से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार पार्षद बने और 2015 निगम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी से पटखनी खाकर पूर्व पार्षद हो गए थे। तभी से ये दरबारी के दरबार में बैठकर सिंधिया राग अलाप रहे थे।


इसके अतिरिक्त ये दरबारी भी- नारायणसिंह भाटिया, उमेशसिंह सेंगर, रितेश जटिया, विपिन गिरी, मान सिंह चौधरी, देवेंद्र बुंदेला, राजेंद्रसिंह राठौड़, राजीव अग्रवाल, जितेंद्र बिहान्या सहित करीब 20 से अधिक सिंधिया के ये दरबारी अब भाजपा में रहकर बतौर कार्यकर्ता अपनी नई शुरुआत करेंगे।


समर्थक और दरबारी में ये खासा बड़ा अंतर


हर शब्द के अपने-अपने मायने और मतलब होते हैं। वैसे ही समर्थक और दरबारी में खासा बड़ा अंतर है। दरबारी राजा की दया पर ही निर्भर रहता है और समर्थक राज्य के भले के दृष्टिगत राजा की सोच पर चलता है। दरबारी राजा की चापलूसी में धनवान होता है। समर्थक राजा और राज्य से वफादारी में गुणवान होता है। दरबारी सिर्फ अपने फायदे के लिए राजा की गलत बात में भी हां में हां मिलाता है लेकिन समर्थक राजा के राज्य की भलाई के लिए खुद का फायदा दरकिनार कर उसे सही रास्ता पर चलने की सलाह देता है। दरबारी की हर बात में हां में हां मिलाने की प्रवृत्ति राजा को कभी भी संकट में डाल सकती है लेकिन समर्थक की सही को सही और गलत को गलत की तासीर राजा को किसी भी संकट से उभार सकती है। दरबारी का कार्यक्षेत्र राजा के महल की चाहर दिवारी तक ही सीमित रहता है लेकिन समर्थक का कार्यक्षेत्र राजा के राज्य की सीमाओं तक फैला रहता है। ऐसा नहीं है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों की संख्या उज्जैन में नहीं है। अभी भी उनके कई समर्थक सही को सही और गलत को गलत कहने की तासीर के चलते कांग्रेस में ही रहकर अपना और राज्य का भविष्य संवारने की ठानी है जबकि दरबारियों ने भाजपा में शामिल होकर बतौर कार्यकर्ता अपनी नई शुरूआत कर दी है।


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