कोरोना वायरस के बीच क्या त्रेता या सतयुग जैसा माहौल ? श्रीराम कथा के इन वाचक से समझे

डॉन रिपोर्टर, उज्जैन।
दुनिया में अभी भी कोरोना वायरस का संकट है। इस संकट से हमारा देश भी अछूता नहीं है। इस भयंकर संकट से उभरने के लिए हम 22 मार्च से ही अपने-अपने घरों में लॉकडाउन है। क्या इस संकट के बीच अब देश में त्रेता या सतयुग जैसा माहौल है ? इसे अपनी ही भाषा में समझा रहे है प्रसिद्ध श्रीराम कथा वाचक पंडित सुलभ श्री शान्तु गुरू महाराज। तो आइए समझते है। कोरोना संकट के बीच देश का कैसा बन पड़ा है माहौल ?


कोरोना संकट का माहौल पंडित सुलभ श्री शान्तु गुरु महाराज के अनुसार
आज जो समय चल रहा है उसमें बहुत से लोग यह बोलते सुने होंगे कि ऐसा लग रहा है कि सतयुग त्रेतायुग आ गया है क्योंकि कहीं कोई लूट,डकैती,चोरी नहीं कर रहा,ना कहीं कोई धन कमाने की प्रतिस्पर्धा में लगा है,सभी लोग अपने घर में भजन,कीर्तन और सत्संग कर रहे हैं, माता पिता अपने बच्चों को समय दे रहे हैं सुबह और रात्रि में सभी लोग अपने परिवार जनों के साथ रामायण,महाभारत देख रहे हैं घर में भगवान की लीला व चरित्रों की चर्चा हो रही है आदि ऐसे अनेक काम हो रहे हैं जो सतयुग,त्रेता का एहसास करा रहे हैं।


इस समय का दूसरा पहलू है इसी समय में भगवान स्वरूप बहुत से डॉक्टर,नर्स ,पुलिस अधिकारी, सिपाही व नगर निगम कर्मचारी अपने व अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचाने में लगे हैं यह त्रेता का सिद्धांत है मानस के प्रसंग के अनुसार कामदेव जानते थे शिव समाधि छुड़ाने पर प्राणो का अंत हो जाएगा  पर लोकमंगल के लिए उन्होंने स्वीकार कर लिया
            तदपि करब मै काजु तुम्हारा।
            श्रुति कहँ परम धरम उपकारा।।
             परहित लागि तजई जो देहि।
             संतत संत प्रसंसहि तेहि।।
 कामदेव देवताओं से कहते हैं कि फिर भी मैं आपका काम करूंगा क्योंकि ऐसा कहते हैं कि दूसरे के उपकार के लिये किया गया कार्य ही परम धर्म है जो दूसरों के लिए अपने शरीर का त्याग कर देते हैं संत सदा उन की बढ़ाई करते हैं ।
इस समय का तीसरा पहलू है बहुत सी संस्था,समूह और व्यक्तिगत रूप से अनेक लोग जरूरतमंदों के लिए भोजन सामग्री एकत्रित करते हैं फिर उन्हें बनवाते हैं उसके बाद उन्हें पैक करते हैं और फिर नगर में घूम कर जरूरतमंदों को ढूंढ कर उनके हाथों में भोजन देकर आते हैं यह लोग भी डॉक्टर आदि की तरह अपने को जोखिम में डालकर खाने वाले से अधिक चिंता लेकर उसे खिलाने के लिए पूरे दिन इस काम में लगे रहते हैं ।
वही इस काल का चौथा पहलू है जब पूरा देश अपने लिए अपने परिवार जनों के लिए राष्ट्र के लिए अपने घर में रह रहा है वहीं कुछ लोगों को जिनके पास अति आवश्यक वस्तु का व्यवसाय है उन्हें आपूर्ति की पूर्ति के लिए व्यापार करने की अनुमति मिली हुई है उनमें से कुछ लोग व्यापार के नियम न्यूनतम लाभ निति को छोड़कर कालाबाजारी मुनाफाखोरी आदि धंधे बाजी में लगे हैं ।
पर सोचिए हम सालो से एक ऐसी अंधी दौड़ में भाग लेकर दौड़ रहे हैं जिसकी मंजिल क्या है हमें उसकी कोई जानकारी नहीं थी  पर उसमें भागते भागते हमने परिवार को रिश्तेदारों को और समाज को कहीं पीछे छोड़ दिया था लेकिन प्रकृति ने एक परिवर्तन लिया समय ने अपनी चाल को धीमी की और एक अवसर दिया कि  घर में बैठकर हम आत्ममंथन करें चिंतन करें विचार करें क्या हमने जो इतने वर्ष किया वह सब सही था हम जो कर रहे हैं वह सब उचित है हम क्या कर रहे हैं और हम क्या करना चाहते हैं यह समय की करवट हो सकता हो हमारी परीक्षा के लिए हो कि हम इस विषम समय में कैसे चलते हैं क्या करते हैं।


 ऐसे समय में जब सब लोग अपने घर पर हैं  कुछ लोग उन्हें ऐसा लगता है हम क्या कर सकते इसलिए हम घर बैठे पर ही रहे वही ठीक है कोई बात नहीं यह भी बुरा नहीं है  वहीं कुछ लोगों को लगता है हमें समाज के लिए कुछ करना है वह ऐसे विषम समय में भी डॉक्टर पुलिसकर्मी जरूरतमंदों की व्यवस्था करने के लिए काम कर रहे हैं और वहीं कुछ लोग समय भुनाने में लगे हैं।
 पर स्मरण रखें  सामान्य दिनों में भी ईश्वर हम पर दृष्टि रखता है ऐसा कोई नहीं जिस पर उसकी दृष्टि ना हो पर इस समय तो सब पर विशेष दृष्टि रखे हुए जो घर में बैठा है उसे भी देख रहा है जो घर से निकल कर अपने प्राणों की चिंता किए बिना दूसरों का रक्षण कर रहा है उसे भी देख रहा है और जो ऐसे विषम समय में लोगों को ठग रहा है उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है दूसरों की भावना नहीं केवल धन कमाने में लगा है उसे भी देख रहा है।
यह अवसर दुख को मनाने का नहीं बल्कि कुछ भुनाने का है यह समय कोरोना का है पर रोने का नहीं ठहर कर सोचिए हम इतने वर्षों से समय की चाल से भी कहीं अधिक तेज दौड़ रहे थे हमारे पास कुछ सोचने का समय ही नहीं था पर आज हमें समय मिला है यदि हमारे जीवन के 20,30,40 साल कैसे भी गुजरे हैं तो जीवन के मध्य में आकर हमें विचार करने का समय मिला है क्या हमने जो भी आज तक किया जहां भी हमने समय दिया वह सब सही था उचित था जो कुछ हमने कमाया, क्या कमाया हुआ ऐसे विषम समय में हमारे काम आ पा रहा है चाहे वह हमारा नाम है,कमाया धन हो आदि जो भी हो और यदि लगता है नहीं तो फिर एक बार चिंतन करें शेष रहे जीवन में अब हमें क्या करना है हमारी मंजिल क्या है हमारी राह क्या है जीवन में किसकी अहमियत जो कमाया उसकी या जो छूट गया उसकी हम लोग सौभाग्यशाली हैं जिसे जीवन के मध्य में एक बार फिर नए सिरे से जीवन को पुनः प्रारंभ करने का अवसर मिल गया तो समझे तो यह लाँकडाऊन हमारे लिए लाभदायक इसे सकारात्मक दृष्टि से देखें तो बहुत कुछ हासिल होगा 
हमने जीवन भर काम किया है तब हमारा पेट नहीं भरा तो सोचिए एक-दो महीनों में कितना बड़ा हमारा नुकसान हो जाएगा। जो लोग यह कहते थे कौन ईश्वर, कैसा ईश्वर, जेब में पैसा होगा तो दुनिया पूछेगी आज उनका नाम,शोहरत,पैसा कुछ भी उनके काम नहीं आ रहा उन लोगों के लिए यह लाँकडाऊन एक बडी सीख है ।


 Take the Lockdown very positively it give good result
                                 
                                                  सुलभ शांतु गुरु                                                        "श्री रामकथा वाचक"


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