डॉन रिपोर्टर, उज्जैन।
देश की आजादी में सबसे अहम भूमिका पत्रकारों और वकीलों की रही है। कुशल वकील के साथ हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक बेहतर पत्रकार भी थे, उन्होंने 1919 में सत्याग्रह के नाम से एक साप्ताहिक अखबार की शुरुआत की थी। जो तब की ब्रिटिश सरकार से रजिस्टर्ड नहीं हुआ था। फिर भी सरकार के आदेशों की अवहेलना कर वो ऐसा कर रहे थे। एक पन्ने का ये सत्याग्रह अखबार तब अधिक कीमत एक पैसे में मिलता था।
आज आजादी को 72 साल से अधिक हो गए हैं। इस बीच देश में अंग्रेजों को छोड़कर केंद्र और राज्यों में अपने लोगों की ही सरकारें रही हैं। मध्यप्रदेश में 15 साल भाजपा की सरकार के बाद दिसंबर 2018 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार काबिज हुई थी। हाल ही में मध्यप्रदेश के जनसंपर्क विभाग द्वारा लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के पुनरीक्षण जांच के लिए कड़े व कठोर नियम बनाए गए हैं, तो क्या मान लिया जाए कि महात्मा गांधी के 'साप्ताहिक सत्याग्रह' की तर्ज पर क्या बिना रजिस्टर्ड या लघु व मध्यम अखबारों पर भी सरकारी बिजली गिराने की तैयारी है।
माफिया के लिए अखबार डालना आसान लेकिन पत्रकार के लिए बहुत कठिन
आज के दौर में शराब, भू, गुटखा, ड्रग, खनन या अन्य किसी भी क्षेत्र के माफियाओं के अखबार या चैनल डालना बहुत ही आसान काम है लेकिन किसी भी पात्र श्रमजीवी पत्रकार के लिए बहुत ही कठिन काम है। कोई भी माफिया जनता की भलाई के लिए अखबार या चैनल की शुरुआत नहीं करता बल्कि वह लाखों- करोड़ों के सरकारी राजस्व हड़पने व सरकार, पुलिस एवं प्रशासन से खुद को बचाए रखने के लिए घाटे में भी दिखावे के तौर पर इनका संचालन करते हैं। अपनी काली कमाई से अखबार व चैनल के महंगे संसाधन जुटा कर वे सारी सरकारी शर्ते पूरी कर देते हैं लेकिन पात्र श्रमजीवी पत्रकार के लिए ये शर्ते पूरी करना उतना ही कठिन काम है,जितना सुई के छेद से किसी ऊंट का निकलना आसान।
भौंपूबाजों से सबसे अधिक खतरा, अंगूठा छाप भी पूंछ रहे है कि- 'पानी में से बिजली निकली तो बचा का'
अखबारों में काम करने के लिए पत्रकारों को खुद खबर लिखनी होती हैं। इसे संपादित करने के लिए संपादक को पत्रकार से अधिक ज्ञान अर्जित करना होता है। जो पेज सेट करते हैं या फिर जो प्रेसनोट को खबर की शक्ल देते हैं, उन्हें मात्राओं पर तगड़ी पकड़ रखनी होती है लेकिन भौंपूबाजों के लिए ऐसा कुछ भी नही। इन भौंपूबाजों से ही समाज या व्यापार को सबसे अधिक खतरा है। भौंपूबाजी करने के लिए लिखने-पढ़ने की कोई जरूरत नहीं होती लेकिन बकना आना चाहिए। आज कई ऐसे लोग भौंपूबाजी कर रहे हैं, जो कभी हम्माल थे या फिर चाय की गुमटी पर प्लेटे धोते थे। अंगूठाछाप होने पर भी ये लोगों के सामने भौंपू अड़ाकर पूंछते है कि-"पानी में से बिजली निकल गई तो बचा का'
मुख्यमंत्री नाथ ने प्रेस क्लब अध्यक्ष मेहता को दिया भरोसा
मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा एक परिपत्र जारी किया गया जिसमें लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों की पुनरीक्षण की जांच के लिए कड़े नियम लगाने के आदेश दिये गये हैं। इसे लेकर हाल ही में उज्जैन से सिटी प्रेसक्लब अध्यक्ष संदीप मेहता ने भोपाल पहुंचकर मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात की। उन्होंने मुख्यमंत्री नाथ को बताया कि जनसंपर्क विभाग की ओर से लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों की जांच के लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय समिति बनाने के आदेश दिए गए हैं। जिसका विरोध स्थानीय समाचार पत्र मालिकों एवं पत्रकारों द्वारा किया जा रहा है। पत्रकारों के हितार्थ उनकी ओर से एक ज्ञापन भी मुख्यमंत्री नाथ को सौंपा गया। जिसमें उल्लेख है कि जनसंपर्क विभाग द्वारा समाचार पत्रों की जांच हेतु जो समिति गठित की गई है जिसमें कलेक्टर, श्रम विभाग के अधिकारी, जीएसटी के अधिकारी शामिल किये गये हैं। जिस पर ये चार सदस्यीय टीम किसी भी समाचार पत्र के कार्यालय पर अचानक पुनरीक्षण करने पहुंचेगी। इसके पूर्व 17 जनवरी तक सभी समाचार पत्रों के मालिकों को एक परिपत्र भरकर देना होगा जिसमें सभी तरह की जानकारियां मांगी गई है। इस पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अध्यक्ष मेहता को भरोसा दिया कि इसमें क्या हल निकल सकता है। वे इसे दिखवाएंगे। साथ ही उन्होंने सवाल किया कि क्या ये सिर्फ उज्जैन के लिए आदेश जारी किए गए हैं तो अध्यक्ष मेहता ने उन्हें बताया कि हां अभी फ़िलहाल उज्जैन में यह 17 तारीख दी गई है। जिस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पूरे प्रदेश के लिए है फिर भी वे इसमें जो भी सरल प्रक्रिया होगी, उसे अपनाकर हल निकालने की कोशिश करेंगे।
इनका कहना
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- महात्मा गांधी, अहमदाबाद से नवजीवन अखबार की शुरुआत के दौरान।