सिरफोड़ू ट्रैफिक शोर से राहत पाने के लिए पक्षियों का कलरव और नदी के कलकल की आवाज सुननी है तो सप्ताह में एक बार यहां अवश्य आइए

डॉन रिपोर्टर, उज्जैन।
'काम कोढ़ी का नहीं और फुर्सत घड़ी भर की भी नहीं', ये कहावत कलयुग में सटीक बैठती है। ऊपर से सिरफोड़ू ट्रैफिक का शोर, ये इंसान के मस्तिष्क में और अधिक तनाव भर रहा हैं। यदि इस तनाव से राहत पाने के लिए पक्षियों के कलरव व नदी के कलकल की मीठी आवाज सुननी है तो सप्ताह में समय निकाल कर कम से कम एक बार परिवार सहित यहां अवश्य आइए।
ये स्थान किसी दूसरे शहर में नहीं बल्कि आपके खूबसूरत शहर उज्जैन में ही बनाया गया है। जीवन की आपाधापी के बीच हर आम और खास प्रकृति के नजदीक जाकर कुछ पल या घंटे सुकून पा सके, ये सोचकर राज्य शासन ने 29 लाख रुपए लागत से शहरवासियों व टूरिस्टों के लिए त्रिवेणी के समीप 8 हेक्टेयर भूमि पर वन क्षेत्र विकसित किया है। जंगल अनुभूति नाम देकर इसे वन विभाग ने हूबहू जंगल जैसा विकसित किया है। तो फिर अब सोचना कैसा, समय निकालकर  परिवार सहित आइए इस इको पार्क में और प्रकृति के नजदीक आकर उठाइए उज्जैन सफारी जैसा आनंद।


ये हैं जंगल अनुभूति की खासियत
■ शांत वातावरण में पक्षियों के कलरव व शिप्रा नदी के कलकल की मीठी आवाज सुनाई देती है।
■ काफी मात्रा में वृक्षों की जंगलनुमा घनी छांव सुकून भर देती है।
■ बांस के झुरमुटों के बीच सेल्फी पगोड़ा पाइंट। यहां ली गई सेल्फी सतपुड़ा के घने जंगलों की याद ताजा कर देती है।
■ नीम-पीपल पर पड़े झूलों में झूलते ही मन बोल उठता है कि - ' हो आया सावन झूम के'
■ डेढ़ लाख से अधिक बांसों के वृक्ष और उनके आसपास नजर आने वाले कभी-कभी नाचते या घूमते मोर पूर्ण रूप से जंगल का अहसास करवा देते है।
■ छांव दार वृक्ष के नीचे या धूप सेकने के लिए लगाई गई कुर्सियों पर बैठकर आप खुद प्रकृति का साक्षात्कार ले सकते हैं।
■ यदि साथ भोजन या नाश्ता नहीं ले गए हैं तो यहाँ बनाई गई केंटीन में शुल्क देकर आप जंगल में रहकर भी अपने पेट की आग बुझा सकते हैं। 
■ सुबबूल, नीम, गुलमोहर, कचनार, शीशम, बबूल, अर्जुन आदि प्रजातियों के पेड़ आपको अपनी ओर खींचने को मजबूर करते हैं। 
■ और भी ढेर सारी खासियत इस इको पार्क में हैं।


विकसित किया है वन विभाग ने लेकिन संभाले रखना है आपको
गौरतलब है कि राज्यशासन द्वारा 29 लाख रुपए की लागत से वन विभाग उज्जैन ने ये इको पार्क आपके लिए विकसित किया है लेकिन इसे हमेशा संभाले रखने का दायित्व आपके पास रहेगा। इसलिए जब भी सुकून की खोज में या जंगल की अनुभूति के लिए इस पार्क में जाएं तो अपने साथ ले जाई गई पानी की बॉटल खाली होने पर इधर-उधर न फेंकते हुए डस्टबिन में ही फेंके। कचरा भी इधर-उधर न बिखराते हुए उसे भी डस्टबिन में ही डाले। जिस स्थान पर अकेले या परिवार के साथ बैठकर भोजन या नाश्ता किया हो, उस स्थान को खुद ही साफ कर झूठन भी डस्टबिन में फेंके। बांस के पेड़ों के आसपास सिगरेट व बीड़ी जलाकर न पीएं। तंबाकू या गुटखा खाकर पीक इधर-उधर न उछाले। ऐसी स्थिति में ये इको पार्क सदियों तक आपका रह सकेगा। अन्यथा सरकार का क्या है। बदहाल होने पर वह यहाँ अपने नेताओं के लिए रेस्ट हाउस भी बना सकती हैं। इसलिए सरकार को इसतरह का मौका कतई न देवे और अपने इको पार्क को साफ-सुथरा रख कर परिवार सहित सालों प्रकृति का आनंद उठाएं।


इनका कहना
राज्यशासन द्वारा 29 लाख रुपए की लागत से त्रिवेणी के समीप 8 हेक्टेयर भूमि पर हूबहू जंगलनुमा इको पार्क विकसित किया गया है। यहाँ पर सबकुछ प्रकृति प्रदत्त है। 
- केके पंवार, डिप्टी रेंजर वन विभाग


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